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5 इंटरनेशनल क्रिकेटर जिन्हें वह फेयरवेल नहीं मिला जिसके वे हकदार थे

कोई भी क्रिकेटर देश के लिए अच्छा खेलता हैं तो उसकी इच्छा होती है कि जब वो क्रिकेट से संन्यास ले तो उसको अच्छा फेयरवेल मिला। क्रिकेटर कई कारणों से संन्यास लेते हैं, कभी-कभी उन्हें चोटों के कारण और कई अन्य कारणों से भी उन्हें समय से पहले संन्यास लेना पड़ जाता हैं।

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कारण कोई भी हो, एक स्टार खिलाड़ी के संन्यास लेने का फैसला करना हमेशा एक इमोशनल एक्सपीरियंस होता हैं। सभी क्रिकेटर का फेयरवेल अच्छा नहीं होता हैं लेकिन सचिन तेंदुलकर या कुमार संगकारा का फेयरवेल शानदार रहा है। तो आज हम आपको उन पांच क्रिकेटरों के बारे में बताने जा रहे है जो बेहतर फेयरवेल के हकदार थे।

1. वीरेंद्र सहवाग

पूर्व भारतीय सलामी बल्लेबाज सहवाग ने भारत के लिए 104 टेस्ट मैच खेले है और 49.34 की औसत के साथ 8586 रन बनाये है। इस दौरान वो 23 शतक, 6 दोहरे शतक, 2 तिहरे शतक और 32 अर्धशतक लगाए है। वहीं उनके वनडे करियर की बात करें तो उन्होंने 251 मैच खेले है और 35.06 की औसत के साथ 8273 रन बनाये है। इस दौरान उनके बल्ले से 15 शतक, 1 दोहरा शतक और 38 अर्धशतक देखने को मिले है।

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सहवाग ने भारत को 19 टी20 इंटरनेशनल मैच में रिप्रेजेंट करते हुए 145.39 के स्ट्राइक रेट की मदद से 394 रन बनाये है लेकिन इस दिग्गज खिलाड़ी को वो विदाई नहीं मिली जिसके वो हकदार थे। वहीं सहवाग ने भी कहा था कि एक खिलाड़ी जिसने अपने देश के लिए 12 से 13 साल खेला हो वह कम से कम एक विदाई मैच का हकदार था।

2. वकार यूनुस

पाकिस्तान के पूर्व कप्तान वकार यूनिस ने 15 साल खेलने के बाद 2004 में क्रिकेट से संन्यास ले लिया, जिसमें उन्होंने 373 टेस्ट विकेट लिए थे। हालांकि उन्हें जो सम्मान मिलना चाहिए था वो उन्हें नहीं मिला। यह देखते हुए कि वह पाकिस्तान के अब तक के सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाजों में से एक थे।

वकार, जिन्होंने वसीम अकरम के साथ क्रिकेट इतिहास की सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाजी जोड़ी में से एक थी। चूंकि वह कप्तान के रूप में दक्षिण अफ्रीका में 2003 वर्ल्ड कप में पाकिस्तान को पहले दौर से आगे ले जाने में सफल नहीं हो पाए थे। उन्हें अचानक कप्तानी से हटा दिया गया और टीम से भी बाहर कर दिया गया।

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वकार ने 2004 में भारत के खिलाफ सीरीज में वापसी के लिए घरेलू क्रिकेट खेला, लेकिन उन्हें नहीं चुना गया। इसके बाद वकार को लगा कि अलविदा कहने का समय आ गया है। उन्होंने मीडिया से संन्यास की घोषणा करते हुए कहा, “मैं एक और साल क्रिकेट खेल सकता था, लेकिन अब खेलने की भूख मर चुकी हैं।

3. माइकल वॉन

इस इंग्लैंड के कप्तान को कभी वह श्रेय नहीं मिला जिसके वह हकदार थे। उनकी कप्तानी में इंग्लैंड ने ऑस्ट्रेलिया को हराते हुए 2005 की एशेज जीत थी इंग्लैंड ने एक दशक तक टेस्ट क्रिकेट में दबदबा रखने वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम को हराकर यह उपलब्धि हासिल की थी। हालांकि, वह 2006/07 में ऑस्ट्रेलिया में घुटने की चोट के कारण सीरीज नहीं खेल पाए। इस कारण वो एक साल तक क्रिकेट नहीं खेल पाए थे।

वॉन ने जब वापसी की तो वो अपनी पुरानी फॉर्म में वापसी नहीं कर सके। उन्हें इंग्लैंड में 2009 एशेज से पहले प्रैक्टिस मैच खेलने वाली 16 सदस्यीय टीम से बाहर कर दिया गया था, यह संकेत था कि उनका टेस्ट करियर खत्म हो सकता हैं। इसके तुरंत बाद, पूर्व कप्तान और एशेज हीरो ने औपचारिक विदाई का मौका दिए बिना, संन्यास की घोषणा कर दी।

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4. वीवीएस लक्ष्मण

वीवीएस लक्ष्मण ने हमेशा ऑस्ट्रेलिया के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि पूर्व ऑस्ट्रेलियाई दिग्गज स्टीव वॉ ने अपने गेंदबाज ब्रेट ली से कहा था, “अगर आपको द्रविड़ मिले, तो बढ़िया। सचिन मिले तो शानदार। लक्ष्मण मिले तो चमत्कार है।”

द वेरी वेरी स्पेशल मैन, जैसा कि वह इस नाम से मशहूर है। वह भारत के लिए सबसे बेहतरीन टेस्ट बल्लेबाजों में से एक रहे है और हर संभव अर्थ में वह मैच विजेता खिलाड़ी रहे है।

हालांकि, 2012 में, वीवीएस लक्ष्मण द्वारा अचानक संन्यास की घोषणा ने इस विवाद को जन्म दिया था कि स्टाइलिश बल्लेबाज के साथ क्रिकेट बोर्ड और चयन समिति द्वारा अच्छा व्यवहार नहीं किया गया था।

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5. मार्क वॉ

स्टीव वॉ के जुड़वां के रूप में जाने जाने वाले मार्क वॉ ने 2002 में इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास ले लिया। वह ऑस्ट्रेलिया के लिए बेहद सफल रहे, टेस्ट में चौथे नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए और वनडे क्रिकेट में एक सलामी बल्लेबाज के रूप में, 16,500 से ज्यादा रन बनाए है।

2001 में वो अच्छा प्रदर्शन करने में कामयाब नहीं हुए थे और इसी कारण उन्हें टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। इसके बाद 2002 में उन्होंने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले लिया। उन्होंने मीडिया के सामने खुले तौर पर स्वीकार किया कि उस साल की शुरुआत में मौजूदा टेस्ट टीम और वनडे टीम से बाहर किये जाने के कारण उन्हें लगा कि 37 साल की उम्र में ऑस्ट्रेलिया के लिए खेलने की उनकी संभावना कम थी। इसी वजह से उन्होंने अपना आखिरी इंटरनेशनल मैच खेलने का मौका मिले बिना इंटरनेशनल क्रिकेट को अलविदा कह दिया था।

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